Independent Senior Citizens

An Inspiring Story Of Independent Senior Citizen

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Independent Senior Citizen

Travel With Independent Senior Citizen Couple.

कल लखनऊ से पुणे की  विस्तारा एयरलाइन्स  की  उड़ान में एक बुजुर्ग दंपत्ति मिले। सज्जन की उम्र करीब 80 साल रही होगी। उन्होंने खुश होकर बताया कि उनकी पत्नी भी 75 पार कर चुकी हैं और यह बताते हुये उनकी आँखें चमक उठीं।

उम्र के सहज प्रभाव को यदि नजरंदाज कर दें, तो दोनों करीब-करीब फिट थे।

पत्नी खिड़की की ओर बैठी थीं सज्जन बीच में और मैं सबसे किनारे वाली सीट पर था।

उड़ान भरने के साथ ही पत्नी ने कुछ खाने के लिये घर कि बनी हुयी नमकीन मठरी निकाली और पति की ओर बढ़ा दिया। पति कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे।

फिर विमान में जब भोजन सर्व होना शुरू हुआ तो उन लोगों ने चावल दाल प्री बुक किया था। 

दोनों बहुत आराम से चावल दाल खाते रहे। मैंने पता नहीं क्यों सेंडविच ऑर्डर कर दिया था। खैर, मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है कि मैं जो ऑर्डर करता हूं, मुझे लगता है कि सामने वाले ने मुझसे बेहतर ऑर्डर किया है।

अब बारी थी पेय की।

पीने में मैंने स्प्राइट का ऑर्डर दिया था। अपने Can के ढक्कन को मैंने खोला और धीरे-धीरे पीने लगा।

उन सज्जन ने फ्रूट जूस लिया हुआ था।

खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं।
सज्जन कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने शिष्टाचार हेतु
कहा कि लाइए…

“मैं खोल देता हूं” सज्जन ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे कि…

बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।

मैंने कुछ पूछा नहीं, लेकिन सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।

यह देख, सज्जन ने आगे कहा

बेटाजी, आज तो आप खोल देंगे।

लेकिन अगली बार..? कौन खोलेगा.?

इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए।

पत्नी भी पति की ओर देख रही थीं।

जूस की बोतल का ढक्कन उनसे अभी भी नहीं खुला था।

पर पति लगे रहे और बहुत बार कोशिश कर के उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया।

दोनों आराम से जूस पी रहे थे।

मुझे लखनऊ से पुणे की इस उड़ान में ज़िंदगी का एक सबक मिला।

सज्जन ने मुझे बताया कि उन्होंने.. ये नियम बना रखा है। कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिये
वे सिर्फ पत्नी की मदद ही लेते हैं, बाकी किसी की नहीं।

वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं। सज्जन ने मुझसे कहा कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए।

एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर हुआ तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा।

फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे। फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा।

अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।

हम गोवा जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे।

हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं।

बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी, पर उन्हें कौन समझाए कि मुश्किल तो तब होगी जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे। पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बेटों को दे कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं।

और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं।

जहां जाना होता है ट्रेवेल एजेंट टिकट बुक करा देते हैं। घर पर टैक्सी आ जाती है। वापसी में एयरपोर्ट पर भी टैक्सी ही आ जाती है।

होटल भी पहले से बुक होता है तो उसमें भी कोई तकलीफ होनी नहीं है। स्वास्थ्य, उम्रनुसार, एकदम ठीक है। कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती।

पर थोड़ा दम लगाओ, तो वो भी खुल ही जाती है। मेरी तो आखेँ ही खुल की खुली रह गई।

मैंने तय किया था कि इस बार की उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैंने जीवन की फिल्म ही देख ली।

एक वो फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।

“जब तक हो सके, आत्मनिर्भर रहिये।”
अपना काम, जहाँ तक संभव हो, स्वयं ही करो।

It was one of the best journey I had, this was an excellent lesson given by the Independent Senior Citizen Couple, I will never forget through-out my whole life.

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